About parshuram in hindi. Biography of Parshuram in Hindi 2022-11-07

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परशुराम एक प्रख्यात हिन्दू धर्म के अध्यक्ष हैं। उनका जन्म संत शंकराचार्य और माता हनुमानी के संतान था। वे एक बहुत ही महान अभिषेकी हुए थे और धर्मगुरु बने थे। परशुराम अपने जीवन काफी अधिकांश समय अपने जाति और धर्म की रक्षा करने में लगे हुए थे।

उनके जीवन में कई कार्य हैं जो उनके नाम को सुनामी बना देने वाले हैं। एक ऐसा कार्य है जो परशुराम ने अपने जीवन में किया था, वह है कि वे अपने जाति के पुत्रों को हत्या कर के अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की है। परशुराम ने अपने जीवन में अपनी जाति की सम्पूर्ण स्त्रियो

परशुराम पर निबंध

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And Directed by Gautam Nagrath. परशुराम महाभारत Parshuram Mahabharat समझते हैं महाभारत में परशुराम कौन थे parshuram ji kaun the ; महाभारत काल में परशुराम जी की भूमिका के बारे में इन तथ्यों और कहानियों द्वारा पता लगाया जा सकता है: महाभारत के युद्ध के कई महान योद्धाओं को परशुराम जी ने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। उन महारथियों में सूर्यपुत्र कर्ण, पितामह भीष्म, और गुरु द्रोणाचार्य शामिल हैं । कर्ण ने परशुराम भगवान से शिक्षा प्राप्त करने के लिए झूठ का सहारा लिया था। इस बात का पता चलने पर परशुराम जी अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। क्रोधवश उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया कि जब कभी भी उन्हें अपनी विद्या कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ेगी तो वो उसे पूरी तरह से भूल जायेंगे। परशुराम कौन थे parshuram ji kaun the में आगे पढ़ें. परशुराम की प्रतिज्ञा महाभारत में भी परशुराम जी की कथा कई बार आती है, जिनमें से दो कथाएं बहुत प्रसिद्ध है. सहस्त्र भुजाएं होने के कारण उसे सहस्त्रबाहु भी कहा जाने लगा. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥ सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥ सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥ सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥ सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥ बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥ येही धनु पर ममता केहि हेतू। सुनी रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥ रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्। धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥ लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।। छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥ बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥ बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।। बाल ब्रह्म्चारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥ सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥ मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥ बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥ इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥ सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥ बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।। कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥ जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर। कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥ भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥ कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥ तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥ लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥ अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥ नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥ बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥ सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। विधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥ तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥ अब जनि दै दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥ बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा॥ कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥ खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥ उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे॥ न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥ गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥ कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥ माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥ सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥ अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥ सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥ भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥ मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥ अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥ लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥ 4.

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भगवान Parshuram Ji Kaun The और क्या है उनका इतिहास?

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भगवान परशुराम के समय एक राजा था जिसका नाम था कार्तवीर्य अर्जुन। उसकी हज़ार भुजाएं थी, इसलिए उसे सहस्त्रबाहु भी कहते थे। वह लंका के राजा रावण को भी परास्त कर चुका था जिसके बाद उसकी प्रसिद्धि तीनो लोकों में व्याप्त हो चुकी थी। एक बार जब परशुराम अपने आश्रम से बाहर गए हुए थे तब कार्तवीर्य अर्जुन ने उनके पिता के आश्रम पर हमला करके उनकी मुख्य गाय कामधेनु चुरा ली Parshuram Sahastrarjun Yudh थी। जब परशुराम पुनः अपने आश्रम लौटे और सब घटना का ज्ञान हुआ तब उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाएं काटकर उसका वध कर दिया था। 4. वे स्वयं बहुत शक्तिशाली थे. परशुराम सदा अपने से बड़ो व माता पिता का सम्मान करते थे तथा उनकी आज्ञा का पालन करते थे. तुम मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डालो, अर्थात अपनी मृत्यु को न्यौता मत दो। मेरे हाथ में वही फरसा है, जिसकी गर्जना सुनकर गर्भ में पल रहे बच्चे का भी नाश हो जाता है। बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥ इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- परशुराम की डींगें सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराते हुए बड़े प्रेमभरे स्वर में बोलते हैं कि परशुराम तो जाने-माने योद्धा निकले। आप तो अपना फरसा दिखा कर ही मुझे डराना चाहते हैं, मानो फूंक से ही पहाड़ उड़ाना चाहते हों। परन्तु मैं कोई छुइमुई का वृक्ष नहीं, जिसे आप अपनी तर्जनी ऊँगली दिखा कर मुरझा सकते हैं। मैं आपकी इन बड़ी-बड़ी डींगों से डरने वालों में से नहीं हूँ। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥ सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥ बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।। कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥ राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- इन पंक्तियों में लक्ष्मण कहते हैं, मैंने आपके हाथ में कुल्हाड़ा और कंधे पर टँगे तीर-धनुष देखकर, आपको एक वीर योद्धा समझा और अभिमानपूर्वक कुछ कह दिया। आपको ऋषि भृगु का पुत्र मानकर एवं काँधे पर जनेऊ देखकर आपके द्वारा किये गए सारे अपमान सहन कर लिए और क्रोध की अग्नि को जलने नहीं दिया। वैसे भी हमारे कुल की यह परंपरा है कि हम देवता, ब्राह्मण, भक्त एवं गाय के ऊपर अपनी वीरता नहीं आजमाते। आप तो ब्राह्मण हैं और मैं आपका वध करूँ, तो पाप मुझे ही लगेगा। आप अगर मेरा वध भी कर देते हैं, तो मुझे आपके चरणों में झुकना पड़ेगा। यही हमारे कुल की मर्यादा है। फिर आगे लक्ष्मण कहते हैं कि आपके वचन ही किसी व्रज की भाँति कठोर हैं, तो फिर आप को इस कुल्हाड़े और धनुष की क्या ज़रूरत है जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर। राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- यह सुनकर ऋषि विश्वामित्र जी ने परशुराम जी से कहा कि हे मुनिवर! महाभारत के एक और मुख्य पात्र कर्ण ने परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी। उसने स्वयं को ब्राह्मण बताकर शिक्षा ग्रहण की थी जो की असत्य था। जब भगवान परशुराम को इसका ज्ञान हुआ तब उन्होंने कर्ण को श्राप दिया था कि जब उसे अपनी विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी तभी वह उसे भूल Parshuram Ne Karan Ko Shrap Diya जायेगा। इसी श्राप के कारण महाभारत के भीषण युद्ध में कर्ण का वध धनुर्धारी अर्जुन के हाथों हुआ था। 9. भगवान परशुराम का उल्लेख दोनो महान भारतीय महाकाव्यों रामायण और गीता में मिलता है. यह बालक बहुत ही मंद बुद्धि वाला और मुर्ख एवं उदंड है, जिसके कारण यह अपने ही कुल का नाश कर बैठेगा। इसे सत्य का ज्ञान नहीं है। यह चंद्रमा में लगे दाग की तरह अपने कुल के लिए एक कलंक है। इसको काल ने घेर रखा है। मैं चाहूँ तो छण-भर में इसका अंत कर सकता हूँ। फिर मुझे तुम दोष मत देना। अगर तुम इस बालक की सलामती चाहते हो, तो मेरे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बतलाकर इसे समझाओ एवं शांत करो। लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥ अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥ नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥ बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥ राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में परशुराम की बात सुनकर लक्ष्मण कहते हैं, हे मुनिवर! Parshuram की माता रेणुका भी अपने पति के साथ सती हो गई. एक कथा भीष्म के साथ उनके युद्ध की है.

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The legend of Parshu

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परशुराम ने जब गणेश जी के दांत काट दिया यह कहानी उस समय की जब परशुराम भगवान शिव से मिलने कैलास गये थे। चूंकि परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। इस बार वे भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस बक्त भगवान शिव साधना में रत थे। गणेश भगवान ने परशुराम को दरवाजे पर ही रोक दिया। तब परशुराम ने क्रोध में आकर अपने फरसे से भगवान गणेश पर प्रहार कर दिया। जिस कारण गणेश जी का एक दांत टूट गया। तभी से गणेश जी को एकदंत के नाम से जाना जाता है। 8. And Directed by Gautam Nagrath. हम बचपन में खेल-खेल में ऐसे कई धनुष तोड़ चुके हैं, तब तो आप क्रोधित नहीं हुए। परन्तु यह धनुष आपको इतना प्रिय क्यों है? परशुराम जी के अस्त्र परशुराम जी युद्धकला में निपुण थे। उनका मुख्य अस्त्र कुल्हाड़ी माना जाता है, जो उन्हें शिवजी की कठिन तपस्या करके प्राप्त हुआ था। उनके कुल्हाड़ी अस्त्र को परशु या फिर फरसा नाम से भी पुकारते हैं। उनके धनुष कमान का नाम विजय था। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर रावण पुत्र इंद्रजीत के अलावा पृथ्वी पर सिर्फ परशुराम जी के पास सबसे शक्तिशाली और अद्वितीय अस्त्र पशुपत, वैष्णव, और ब्रह्मांड अस्त्र थे। शिवजी ने उन्हें कठिन युद्धकला कलारीपयाट्टू की शिक्षा प्रदान भी की थी। परशुराम रामायण Parshuram Ramayan समझते हैं रामायण में परशुराम कौन थे parshuram ji kaun the ; रामायण काल के दौरान परशुराम जी की भूमिका का पता इस कथा से लगता है: जब राम भगवान ने सीता जी के स्वयंवर में पहुँच कर भगवान शंकर का धनुष तोड़ा था, तो उसकी गर्जना सुन परशुराम जी वहाँ पहुँच गए। उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर श्री राम को चुनौती दे दी और लक्ष्मण जी के साथ बहुत बहस की। परन्तु जब उन्हें एहसास हुआ कि श्री राम और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु का अवतार हैं, तो उन्होंने स्वयं ही समर्पण कर दिया। उसके पश्चात् वे पुनः महेन्द्रगिरि पर्वत में जाकर तपस्या करने लगे। परशुराम कौन थे parshuram ji kaun the में आगे पढ़ें. उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया. यदि इस बालक ने आपका अपमान किया है, आपको कुछ अनाप-शनाप बोला है, तो कृपया इसे क्षमा कर दें। कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥ भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥ कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥ तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥ राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- विश्वामित्र की बात सुनकर परशुराम कहते हैं, हे विश्वामित्र! भगवान परशुराम ने जब कर्ण को श्राप दिया अंगराज कर्ण परशुराम के पास शस्त्र विद्या प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने अपने को सूत पुत्र के रूप में परिचय दिया था। एक समय की बात है परशुराम, कर्ण के जांघ पर सर रखकर सो रहे थे। इस दौरान कर्ण को किसी कीड़े ने काट लिया और पैर से खून निकल रहा था। लेकिन कर्ण कष्ट सहते रहे और अपने पैर को नहीं हिलाया। क्योंकि इससे परशुराम जी की नींद खुल जाती। जब परशुराम जी नींद से जगे, तो कर्ण के बहते हुए खून को देखकर वे समझ गये। उन्हें पता चल गया की कर्ण कोई सूत पुत्र नहीं है बल्कि क्षत्रिय है। इस करना उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया की जो विद्या कर्ण ने सीखी है। वह जरूरत पड़ने पर भूल जाएगा। कहते हैं की महाभारत की लड़ाई में परशुराम जी के श्राप के कारण उनसे सीखी विद्या को भूल गये। जो उनकी मृत्यु का कारण बना। 7.

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Parshuram (TV Series 2022

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. उनका लालन पालन आश्रम में प्रकृति के सुरम्य वातावरण में हुआ था. परशुराम द्वारा क्षत्रियों का 21 बार संहार कहते हैं की भगवान परशुराम ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए सहस्त्रबाहु वध किया। सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का वध कर दी। इससे क्रोधित होकर परशुराम ने सहस्त्रबाहु के सभी पुत्रों का मार दिया। इस प्रकार उन्होंने धरती पर 21 बार क्षत्रियों का विनाश किया। 5. त्रेता युग में सीता स्वयंवर के दौरान श्रीराम ने जब शिवजी के धनुष को तोड़ा तो उसकी गर्जना पूरे ब्रह्मांड में फ़ैल गई. उनकी शिक्षा है कि माता-पिता का आदर सर्वोच्च है.

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राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित

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हर वर्ग उनको पूजनीय मानता है. Telegram Group परशुराम नारी के सम्मान के प्रति कटिबद्ध थे. भगवान परशुराम जी की कथाएं — parshuram story in hindi pdf download परशुराम जी की अनेक कथाएं प्रचलित है. एक बार उनका अपने ही शिष्य भीष्म से भयंकर युद्ध हुआ Parshuram Bhishma Yudh था लेकिन इस युद्ध का कुछ भी परिणाम नहीं निकला था क्योंकि परशुराम स्वयं भगवान थे व भीष्म को अपनी इच्छा के अनुसार मृत्यु मिलने का वरदान था। इसलिए कई दिनों तक भीषण युद्ध चलने के पश्चात स्वयं देवताओं ने दोनों के बीच युद्ध को रुकवाया था। 8. Essay On Parshuram In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम भगवान महर्षि परशुराम पर निबंध लेकर आए हैं. एक दिन किसी कारणवश उनके पिता जमदग्नि जी अपनी पत्नी से नाराज हो गये और परशुराम को आज्ञा दी कि वे अपनी माता का वध कर दें.

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भगवान परशुराम के बारे में 10 रोचक तथ्य, Parshuram Unknown Facts In Hindi

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वहां उसने ऋषि की कामधेनू गाय को देखा तो उसने बलपूर्वक उसे जमदग्नि से छीन ले गया. परशुराम जी ने क्यों अपनी माता का वध किया — why parshuram killed his mother परशुराम जी परम पितृभक्त थे और अपने पिता की हर आज्ञा का पालन करते थे. Parasuraman who believed to be the sixth incarnation of lord Vishnu. उनके लिये पिता की आज्ञा सर्वोपरी थी. परशुराम जीवन परिचय — parshuram ka jeevan parichay परशुराम जी शिक्षा-दिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं महर्षि ऋचीक के आश्रम में हुई. तुलसीदास जी ने इस भेंट का बहुत सुंदर वर्णन किया है. परशुराम परम गौ भक्त भी थे.

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Biography of Parshuram in Hindi

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भगवान परशुराम कौन थे parshuram ji kaun the का सरल उत्तर यह है कि वे विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं । Question 3 : क्या परशुराम ब्राह्मण थे? वे तुरंत मन की गति से मिथिला राजा जनक के दरबार में पहुंच गये और राम को चेतावनी दी. . निबंध, भाषण, अनुच्छेद में हम भगवान परशुराम जयंती, इतिहास, जीवनी, कथा, जीवन परिचय के बारें में विस्तार से जानेगे, आप इसे पढ़ने के बाद जान पाएगे कि परशु राम कौन थे उनकी प्रतिज्ञा व कार्य क्या थे आदि. तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उनके और लक्ष्मण के बीच हुआ संवाद बहुत पठनीय और लोकप्रिय है. वे अपने माता पिता की पाँचवी संतान थे उन्हें विष्णु के छठे अवतार आवेशा वतार के रूप में जाना जाता हैं.

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परशुराम कुंड का इतिहास

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मान्यता है कि भगवान परशुराम कलयुग के अंत में फिर से आएंगे। उनका दायित्व भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को शिक्षा देने तथा अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाना Parshuram Honge Kalki Ke Guru होगा। इस दायित्व को निभाने के पश्चात इस धरती से उनका उद्देश्य समाप्त हो जायेगा तथा वे पुनः श्रीहरि में समा जाएंगे।. अपने क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहिन कर दिया. परशुराम जगत में वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करना चाहते थे. वे बताये कि वे इसे किस पर चलाये. लक्ष्मण और परशुराम संवाद तो बहुत ही लोकप्रिय है.

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